आज का विषय हैं -ous और -ic के बारें में । आपने केमिस्ट्री में कुछ शब्दों को हमेशा सुना होगा जैसे नइट्रिक नाइट्रस, ferric, ferrous, cupric, cuprous, सल्फ्यूरिक , सल्फुरस | लेकिन प्रश्न ये उठता हैं की आख़िर यें हैं क्या ?
शुरू में ये नामकरण सिस्टम धातुओं के लिए था, ऐसे धातु जो exactly दो ऑक्सीकरण अवास्था दर्शाते हो हो, और उनके नाम की उत्पत्ति लैटिन भाषा से हुई हो,
जैसे कॉपर, आयरन, टिन, लेड, इत्यादि | इनके अनुसार जब धातु अपने अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था में हो तो उनके नाम के साथ -ic लगते हैं और जब उनमे ऑक्सीजन की कमी हो तो उनके नाम के साथ -ous लगते है | जैसे कॉपर की सामान्यतः दो ऑक्सीकरण अवस्था होती हैं +2 aur +1. Ferrum जिसे आयरन भी कहते है उसकी ऑक्सिकरण अवस्था +3 और +2, Stannum जिसे टीन कहते है उसकी ऑक्सिकरण अवस्था +4 और +2, तथा plumbum जिसे लेड कहते है उसकी ऑक्सीकरण अवस्था +4 और +2 होती है |
अतः यहाँ जब कॉपर +2 ऑक्सीकरण अवस्था में होता हैं तो उसके नाम के साथ -ic लगता है जैसे cupric तथा +१ ऑक्सीकरण अवस्था में होता हैं तो उसके नाम के साथ ous लगता है जैसे cuprous । उसी प्रकार जब आयरन ३ में हो तो उसे ferric तथा +2 में हो तो उसे फेरस कहते हैं । आयरन को ferrum कहते है उसी से ferric और ferrous टर्म आये हैं । इसी तरह टिन के लिए स्टैनिक और stannous तथा लेड के लिए प्लम्बिक और plumbous शब्दों का प्रयोग करते हैं ।
उदाहरण के लिये cuprous क्लोराइड, ferric oxide , और mercuric chloride । Cuprous में कॉपर की ऑक्सीकरण संख्या +१ , ferric में +३ तथा मरक्यूरिक में +२ होती है। मरकरी +२ तथा +१ ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता हैं ।
ऑक्सीजन के सन्दर्भ में एसिड्स और oxides के साथ भी -ous और -ic लगते है। इसीलिए सल्फुरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड टर्म होता है।।लेकिन सल्फुरिक क्लोराइड या नाइट्रिक क्लोराइड जैसा कोई शब्द नहीं होता। नाइट्रस ऑक्साइड होता है लेकिन नाइट्रस क्लोराइड नहीं होता । नियम यहाँ भी वही कि अगर कोई तत्व अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था में है तो पस्च्लग्न यानि सफिक्स –ic लगेगा और अगर एक ऑक्सीजन कम है तो –ous लगेगा।
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